ठिठुरी धरती

ठिठुरी धरती ठिठुरा सा गगन तरु वल्लरी भी स्तब्ध गहन थर-थर काँपे गिरि वन नदिया किसी विधि नहीं हो ये ठंढ वहन भूली बुलबुल कुजन किल्लोल किसने दी ऋतू में बरफ घोल। कलि क्लांत सुकोमल खिल न सकी दुपहर तक रवि से मिल न सकी बिरहा की सर्द शिथिलता में रुक-रुक बरबस लेती सिसकी मौसम … Continue reading ठिठुरी धरती